घर के दोनों ओर कई पेड़ और इस मौसम में चलती ठंडी हवा, बड़ी सी छत में चारों ओर 3फुट की लंबी बाउंडरी के सामने से पूरा खुला हुआ मैदान
मैदान ऐसा की नज़रे जहां तक जायगी नज़ारे ही नज़ारे है कोई अवरोध नही कोई विरोध नही..
बस आंख बंद करो और महसूस करो सामने अथाय समंदर, ऊपर उठती लहरे और उनपर कल कल की आती आवाजे.. ऊंची उठती लहरे और उठकर गिरती लहरे....
आज की बिखरी चांदनी में बादलों से आती हुई चांद की झिलमिल रोशनी.. अंधेरे में उजाले के फैले पैर और उस पर पानी की लहरों में चितर-बितर खेल करती मछलियों की अनगिनत क्रियाएं..
किनारों की रेत में आगे बढ़ते हुए पानी की धीमी रफ्तार पेड़ों की जड़ो को स्पर्श करने की कोसिस करती हुई लहरें... वहीं एक ओर उसी तलछटी में भागते हुए अश्व जोड़े की आवाजें और उनकी क्रीड़ाएँ... ऐसे शांत मौसम में उनकी हिनहिनाने की तेज ध्वनि....न तो अकेले होने का प्रतीत होने दे रही है और न ही किसी के साथ होने का..
बात करने को कोई नही लेकिन बात करनी है.. बात वो करनी है जो किसी ने की नही बात उससे करनी है जो किसी से कह नही सकता..
इन मछलियों, लहरों, चारों ओर वृक्षों के समूहों में से कोई एक वृक्ष या रेत के शांत जल में दौड़ते अश्व
में से कोई आए और आकर बात करने की कोसिस करे.. वो बताए कि प्रकृति का दृश्य, यहाँ की सुंदरता... बेजुबां/मूक से लगने वाले जानवर/जीव और ये ठंडी हवाएं भी बाते कर रही है..
मोबाइल फ़ोन की पहुँच से दूर .जहाँ नेटवर्क की कोई सुविधा भी नही वहाँ आज बैठे बैठे कैसे ये शीप. शंख और ये उड़ते हुए सूखे पत्ते बिना तकनीक के संदेश ,आवाजें और दृश्यों के लिए स्वर्ग के डाकिए, चित्रगुप्त की तरह अपना योगदान दे रहे है..
आज सबसे दूर इस अकेली भीड़ में ईश्वर की बनाई सुंदरता का आनंद लेने कोई नही बचा कहने वालों के लिए ये देखना एक भाग्यवानी ही होगा कि कैसे ये सब जो सबसे दूर है यहाँ एक -दूसरे के कितने पास है।
ये देखने की दुनिया जहां..
न बोल सकने वाले बात कर रहे है,
सुन न सकने वाले कहानियां कह रहे है,
चलने में असमर्थ आज हवाओं में उड़ रहे है,... सदैव दूसरों को अपनी पीठ पर लादे चलने वाले आज अपने सपनों की पीठ में विराजमान है.. ये स्वयं में भगवान है, ये ही भगवान है...
इतना सब देखने के बाद जब आंख खुली तो खुद को उसी चार दिवारी की छत में पाया.. लेकिन उसी उल्लास,उमंग और जोश के साथ जैसे समंदर की रेत में बैठ कर आया....
✍इमरान
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आज की बिखरी चांदनी में बादलों से आती हुई चांद की झिलमिल रोशनी.. अंधेरे में उजाले के फैले पैर और उस पर पानी की लहरों में चितर-बितर खेल करती मछलियों की अनगिनत क्रियाएं..
किनारों की रेत में आगे बढ़ते हुए पानी की धीमी रफ्तार पेड़ों की जड़ो को स्पर्श करने की कोसिस करती हुई लहरें... वहीं एक ओर उसी तलछटी में भागते हुए अश्व जोड़े की आवाजें और उनकी क्रीड़ाएँ... ऐसे शांत मौसम में उनकी हिनहिनाने की तेज ध्वनि....न तो अकेले होने का प्रतीत होने दे रही है और न ही किसी के साथ होने का..
बात करने को कोई नही लेकिन बात करनी है.. बात वो करनी है जो किसी ने की नही बात उससे करनी है जो किसी से कह नही सकता..
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में से कोई आए और आकर बात करने की कोसिस करे.. वो बताए कि प्रकृति का दृश्य, यहाँ की सुंदरता... बेजुबां/मूक से लगने वाले जानवर/जीव और ये ठंडी हवाएं भी बाते कर रही है..
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इतना सब देखने के बाद जब आंख खुली तो खुद को उसी चार दिवारी की छत में पाया.. लेकिन उसी उल्लास,उमंग और जोश के साथ जैसे समंदर की रेत में बैठ कर आया....
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