एक बार की बात है कि एक क़ासिम नाम का व्यक्ति था,जो एक अमीर मुस्लिम परिवार से था,
जिन्हें अपनी गाड़ी के लिए driver की तलाश थी,
कासिम(परिवार का मुखिया)
दरअसल हुआ ये था कि उस घर में दो गाड़ियां थी, जिसमे से एक क़ासिम की थी और दूसरी गाड़ी परिवार के लोगों(उसकी पत्नी,बच्चों, माँ-बाबा,)और दूसरे कामों के लिए थी, वैसे तो घर मे गाड़ियों के लिये दो driver थे पहले से,
लेकिन किसी काम से घर की गाड़ी के ड्राइवर को दूसरे काम मे मज़बूरन जाना पड़ा, और वह अपनी नौकरी छोड़ कर कुछ वक़्त के लिए चला गया,
चूंकि अब घर में भी बहुत से काम आगे रहते है और क़ासिम भी घर मे न थे कि उनकी गाड़ी से काम हो जाय, जिसके चलते उनहे थोड़ी परेशानिया होने लगी और काम देरी से होने लगें,
जब क़ासिम को ये बात मालूम चली तो उसने अपने मुलाज़िम (personal अस्सिटेंट) से अखबार में एक इसतिहार /विज्ञापन(Add) निकालने को कहा , अब क़ासिम साहब तो शहर में थे नही तो उनका मुलाज़िम driver के ऐड के लिए योग्यता और अन्य जानकारी लेने के लिए क़ासिम साहब की पत्नी के पास जाता है
उनकी पत्नी कुछ योग्यता और जरूरत के हिसाब से निम्न जानकारी देती है
वो नमाजी हो,
हाज़ी हो,
झूठ न बोलता हो,
वक़्त का पाबंद हो,
एक नेक दिल इंसान हो, इन जानकारी के हिसाब से वो अखबार पत्र में अपना विज्ञापन लिखवा देते है,
कई दिन निकल जाते है, और कोई भी उनके यह नोकरी के लिए नहीं आता और जो आता भी तो उनके लिए उन्हें सही न लगता,
ऐसे करते करते के दिन गुजर गए, और तब तक क़ासिम साहब नही अपनी विदेश की यात्रा से लौट आए, उसी समय एक और नौजवान उनकी ज़रूरत के हिसाब से
हट्टा-कट्टा, गोरा-चिट्टा,नज़रें नीची रखने वाला,हाज़ी, दाढ़ी वाला मुस्लिम नौजवान
मिल जाता है,जिसे वो एक बार मिलने के लिए बुलाते है,
अब क़ासिम साहब और उनकी पत्नी जैसे ही उस नौजवान से बात करना शुरू कर ही रहे होते है तभी उन्हें पता चलता है कि नौजवान की भी कुछ शर्तें है, क़ासिम साहब के पूछने ओर नौजवान अपनी शर्ते एक एक करके बोलना शुरू करता है
नौजवान-जिस भी गाड़ी में मैं रहूँगा उसमे गाने नही बजेंगे,
क़ासिम साहब-ठीक है वैसे भी हमे गाने नही पसंद
नौजवान-किसी भी हालत में मैं नमाज़ नही छोडूंगा,
क़ासिम साहब-जी बिल्कुल, आप नमाज के वक़्त किसी भी पास वाली मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ ले, हमे कोई तक़लीफ़ नहीं,
नौजवान-तीसरी और आखरी शर्त ये है कि मुझे गाड़ी चलाना नही आता, तो पहले आप मुझे गाड़ी चलाना सीखायंगे,
क़ासिम साहब-।।।।....................।।।।।
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क़ासिम साहब का शब्दकोष कम पड़ गया....
जिन्हें अपनी गाड़ी के लिए driver की तलाश थी,
कासिम(परिवार का मुखिया)
दरअसल हुआ ये था कि उस घर में दो गाड़ियां थी, जिसमे से एक क़ासिम की थी और दूसरी गाड़ी परिवार के लोगों(उसकी पत्नी,बच्चों, माँ-बाबा,)और दूसरे कामों के लिए थी, वैसे तो घर मे गाड़ियों के लिये दो driver थे पहले से,
लेकिन किसी काम से घर की गाड़ी के ड्राइवर को दूसरे काम मे मज़बूरन जाना पड़ा, और वह अपनी नौकरी छोड़ कर कुछ वक़्त के लिए चला गया,
चूंकि अब घर में भी बहुत से काम आगे रहते है और क़ासिम भी घर मे न थे कि उनकी गाड़ी से काम हो जाय, जिसके चलते उनहे थोड़ी परेशानिया होने लगी और काम देरी से होने लगें,
जब क़ासिम को ये बात मालूम चली तो उसने अपने मुलाज़िम (personal अस्सिटेंट) से अखबार में एक इसतिहार /विज्ञापन(Add) निकालने को कहा , अब क़ासिम साहब तो शहर में थे नही तो उनका मुलाज़िम driver के ऐड के लिए योग्यता और अन्य जानकारी लेने के लिए क़ासिम साहब की पत्नी के पास जाता है
उनकी पत्नी कुछ योग्यता और जरूरत के हिसाब से निम्न जानकारी देती है
वो नमाजी हो,
हाज़ी हो,
झूठ न बोलता हो,
वक़्त का पाबंद हो,
एक नेक दिल इंसान हो, इन जानकारी के हिसाब से वो अखबार पत्र में अपना विज्ञापन लिखवा देते है,
कई दिन निकल जाते है, और कोई भी उनके यह नोकरी के लिए नहीं आता और जो आता भी तो उनके लिए उन्हें सही न लगता,
ऐसे करते करते के दिन गुजर गए, और तब तक क़ासिम साहब नही अपनी विदेश की यात्रा से लौट आए, उसी समय एक और नौजवान उनकी ज़रूरत के हिसाब से
हट्टा-कट्टा, गोरा-चिट्टा,नज़रें नीची रखने वाला,हाज़ी, दाढ़ी वाला मुस्लिम नौजवान
मिल जाता है,जिसे वो एक बार मिलने के लिए बुलाते है,
अब क़ासिम साहब और उनकी पत्नी जैसे ही उस नौजवान से बात करना शुरू कर ही रहे होते है तभी उन्हें पता चलता है कि नौजवान की भी कुछ शर्तें है, क़ासिम साहब के पूछने ओर नौजवान अपनी शर्ते एक एक करके बोलना शुरू करता है
नौजवान-जिस भी गाड़ी में मैं रहूँगा उसमे गाने नही बजेंगे,
क़ासिम साहब-ठीक है वैसे भी हमे गाने नही पसंद
नौजवान-किसी भी हालत में मैं नमाज़ नही छोडूंगा,
क़ासिम साहब-जी बिल्कुल, आप नमाज के वक़्त किसी भी पास वाली मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ ले, हमे कोई तक़लीफ़ नहीं,
नौजवान-तीसरी और आखरी शर्त ये है कि मुझे गाड़ी चलाना नही आता, तो पहले आप मुझे गाड़ी चलाना सीखायंगे,
क़ासिम साहब-।।।।....................।।।।।
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क़ासिम साहब का शब्दकोष कम पड़ गया....
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