किसी भी बात पर नाम नही बदले जायेगे, बस जगह बदली जा सकती है..
हमारे आस- पास कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें उस मुहल्ले में गौ कहा जाता है अर्थात ऐसे लोग जो अपने काम से मतलब रखे या फिर वो जो एक दम सीधे-साधे हों, ये खास बात भी उसी तरह के एक आदमी की है..जो सिर्फ गौ था लेकिन है नही..
हमारे आस- पास कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें उस मुहल्ले में गौ कहा जाता है अर्थात ऐसे लोग जो अपने काम से मतलब रखे या फिर वो जो एक दम सीधे-साधे हों, ये खास बात भी उसी तरह के एक आदमी की है..जो सिर्फ गौ था लेकिन है नही..
15फरवरी2020 की बात है शाम के समय मैं अपने कमरे से निकल कर चाय पीने जा ही रहा था मेंरी नज़र एक आदमी पर पड़ी जिसका घरेलू नाम बच्च्चा है, मैं उसके पास खड़ा हो गया थोड़ा बात हुुुई,लेकिन उसका ध्यान बातों में न होकर सड़क पर था, था क्यों कि सड़क काफी चहल पहल वाली थी, मैैंने सोोचा बात में ध्यान न होोना एक आम बात है और वहां से जानेे लगा ...
तभी वहां से एक लड़की निकलती है जिसका नाम प्रीति था, वो उसे बड़े बेहूदगी और आवारापन से घूरता है और बोलता है इसी का तो ििइंतज़ार कर रहा था,
मैं: इसका ििइंतजार क्यों?
आदमी:ऐसे ही..
मैं:नाम पता है?उसका
आदमी: नाम का क्या करना है..
मैं:तो फिर.
आदमी: पागल हो क्या, देखो पहले क्या लगती है..
मैं:वो तुम्हारी बेटी की उम्र की है
आदमी:ऐसे कैसे मेरी बेटी की उम्र की नही है
मैं: अरे तुम्हारी बहन की उम्र की है
आदमी: अरे नही है ,30 साल की है
मैं:तो तुम्हारी कितनी है
आदमी: 35...
फिर इतनी बात के बाद वह वहाँ से चला जाता है और मैं भी निकल जाता हूं..
लेकिन सोचने वाली बात है कि वह शक्श जो पड़ोसी है और अपनी बेटी की उम्र की लड़की को इस तरीके से सोच सकता है तो समाज और परिवेश में रहना लड़कियों के लिए कितना कठिन है.
और वह लड़की उसी मुहल्ले में उसी के पड़ोस में रहती थी जिसे वो अपना बड़ा भाई कहती थी, ऐसी सिर्फ वही लड़की बस नही और भी है और उस आदमी जैसे भी बहुत लोग है ये बहुत लोग वही लोग है जो किसी प्रकार की दुष्कर्म और घटना पर दूसरों को कसूरवार ठहराते है और खुद के अंदर नही देखते..
ये बात यही खत्म नही होती, ये उसका प्रतिदिन का कार्य है वहाँ से निकलने वाली लड़कियों/बच्चियों को इस प्रकार से जज करना..
✍इमरान
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Comments
सामान्य सी बात है, लडकिया किसी अन्य ग्रह से नही आ रही.... हमारे परिवार की ही है.... जब हमारी सोच से सामने वाले घर की लडकी महफ़ूज महसूस नही कर सकती तो फ़िर अपने घर की बहन-बेटियो के लिये अच्छे समाज की आशा करना फ़िजूल है....आखिर समाज तो हमारा ही है,हम जैसो से ही बना है.....
उत्तम इमरान भाइ, अच्छी सोच का प्रचार-प्रसार होना ही चाहिए... शराब बिकने का स्थान निश्चित होता है, दूध वाले को ही घर घर जाना होता है.... बुराई तो स्वतः फ़ैल जायेगी,लेकिन जागरुकता लाने से ही आयेगी....
भाइ अच्छा लगता है मुझे,अपने हमउम्र लोगो की ऐसी सोच को देख कर.
लेखक समाज की महत्वपूर्ण कडी है, समाज का आइना है.... उसे ऐसे ही यथार्थ लिखना चाहिए,बात जब समाज की हो तो... सागर कृष्ण
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